Electric cars pros and cons | इलेक्ट्रिक कार क्या है |
- Electric cars pros and cons | इलेक्ट्रिक कार परिचय
- इलेक्ट्रिक वाहन और इलेक्ट्रिक कार (EVs)
- इलेक्ट्रिक वाहनों की भारत में संभावनाएँ
- इलेक्ट्रिक वाहनों की भारत में संबद्ध चुनौतियाँ
- इलेक्ट्रिक वाहनों की भारत में तकनीकी चुनोतिया :
- इलेक्ट्रिक कार इतनी महंगी क्यों है
- इलेक्ट्रिक कार में कौन सी बैटरी लगती है?
- भारत में सबसे सस्ती इलेक्ट्रिक कार कौन सी है?
- Conclusion
इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने के कुछ कारण प्रदूषण को कम करना, ईंधन की बढ़ती मांग, ग्लोबल वार्मिंग और पर्यावरण के अनुकूल साधनों को बढ़ावा देना हैं।
Electric cars pros and cons | इलेक्ट्रिक कार परिचय
Electric cars pros and cons और इलेक्ट्रिक कार को जानने के पहले हम इलेक्ट्रिक वाहनों का परिचय क्र लेते है हम बात करे प्रदुषित रैंकिंग की तो विश्व के 10 सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में से 9 भारत में ही स्थित हैं, जो की भारत वासिय के लिय बहुत शर्मिंदगी की बात है । ग्रेटर नोएडा, नोएडा, लखनऊ और दिल्ली सहित ये सभी शहर उत्तर भारत में स्थित है, जन्हा 1 SQ Km में रहने की आबादी बाकि शहरो से ज्यादा है|
भारत में धीरे-धीरे लेकिन निरंतर रूप से इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रसार को प्रोत्साहित करने के पीछे ये ही सबसे बड़ा कारन है जिससे बड़ी आबादी वाले शहरो में प्रदुसन से कुछ राहत मिल सके।
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ईतिहास की बात करे तो इलेक्ट्रिक वाहनों का ईतिहास बहुत पुराना रहा है एक आकडे के अनुसार 1900 दशक में इलेक्ट्रिक वाहन के पक्ष में पूरी बहस ईंधन-आधारित वाहनों के समक्ष घुटने टेक देने को मज़बूर हुई थी, क्यों की उस समय तरल इंधन की कीमत बहुत कम हुआ करती थी और इलेक्ट्रिक सप्लाई तो दूर दराज के गाव जो शहर से दूर हुआ करते थे वंहा देखने को भी नही मिलती थी| जिस कारन से इलेक्ट्रिक वाहनों को ज्यादा महत्त्व नही दिया गया था | 1895 में ए.एल. रिकर द्वारा अमेरिका में पहली इलेक्ट्रिक ट्राइसाइकिल पेश करने के बाद उपभोक्ताओं ने इलेक्ट्रिक वाहनों पर ध्यान देना शुरू कर दिया।
वर्ष 1886 में एक जर्मन इंजीनियर कार्ल बेंज़ (Carl Benz) ने अपने ‘गैस इंजन से संचालित वाहन’ के लिये आवेदन किया था और उन्हें पेटेंट ( पेटेंट न. 37435) भी प्रदान की गई थी। इसके कुछ ही माह बाद ‘बेंज़ मोटर’ कार का व्यावसायिक उत्पादन शुरू हो गया। कुछ साक्ष्यों से यह पता चलता है की यहीं से गैस इंजनों से संचालित वाहनों के व्यावसायिक उत्पादन की शुरुआत हुई थी।इसी के बाद से हाइब्रिड वाहनों का चलन शुरू हुआ था जो एक सफल प्रयोग था और लोगो ने हायब्रिड वाहनों को काफी महत्त्व भी दिया था और आज 21 वी सदी में भी हाइब्रिड वाहनों को महत्त्व दिया जा रहा है|
Electric cars pros and cons और इलेक्ट्रिक कार के बारे में हम अगर विकसित देश अमेरिका की बात करे तो अमेरिका दुनिया का शक्तिशाली और विकशित देश है जन्हा नासा जेसी संशथा काम कर रही है और इलेक्ट्रिक वाहनों के लिय जानी-मानी TESLA कंपनी कार्य कर रही है वंहा भी वर्ष 1900 तक बिकने वाले सभी वाहनों में इलेक्ट्रिक कारों की हिस्सेदारी एक तिहाई से ज्यादा हो चुकी थी। मतलब विकसित देशो में इलेक्ट्रिक वाहनों का चलन बहुत पहले से होना सुरु हो चूका था बस कारन था इलेक्ट्रिक सप्लाई की आपूर्ति दूर दराज के कस्बो तक नही होना |
अब हम आते है अपने बलोग की हैडलाइन इलेक्ट्रिक कार के लाभ ओर नुक्सान के टॉपिक पे- बैटरी वाली कार जो बेटरी दवारा चलती है जिसमे गियर नही होता और ओनली एक्सीलेटर द्वरा स्पीड कम ज्यादा होती है , ऑटोमोटिव इंडस्ट्री के लिए बिल्कुल ही एक नयी कांसेप्ट है। कुछ कपनियां अब इलेक्ट्रिक कार को पूरी तरह से विकसित करने में इन्वेस्टमेंट कर रही है तो वहीँ कुछ कंपनियां आज भी हाइब्रिड कार के रूप में Electric Car की कुछ सुविधाएं, ईंधन से चलने वाली कारों के साथ जोड़ कर दे रही है। क्यों कि हाइब्रिड कार का चलन काफी समय से होता आ रहा है जो की बहुत प्रिय भी रहा जैसा हमने उपर डिसकस किया है |
Electric cars pros and cons और इलेक्ट्रिक कार के लाभ और नुकसान कुछ इस तरह से है (जो कारन मैंने पर्सनली महसूस किये है वो मै आपके साथ शेयर कर रहा हु अगर आपको भी इसके बारे में कुछ नया मिले तो कमेंट में जरुर लिखे हम उसे ब्लॉग में अपडेट करेंगे और मैं आशा करता हु की INFYSHOPY Family इसमें सहयोग जरुर करेगी|
इलेक्ट्रिक वाहन और इलेक्ट्रिक कार (EVs)
- इलेक्ट्रिक वाहन या (Electric cars) इलेक्ट्रिक कार इलेक्ट्रिक मोटर से संचालित होते हैं और इनमें बैटरी लगी होती है। बेटरी को चार्ज आसानी से कर सकते है जैसे हम मोबाइल को चार्ज करते है.|
- इलेक्ट्रिक वाहनों की परिचालन लागत कम होती है,और ये पर्यावरण के लिये भी अनुकूल होते हैं। इसमें धुआ निकलने वाली मोटर नही होने के कारन हानिकारक गैस नही निकलती है |
- भारत में, इलेक्ट्रिक वाहन के लिये ईंधन की लागत लगभग 80 पैसे से 1 Rs प्रति किलोमीटर है | ओर पेट्रोल-संचालित वाहनों पर ईंधन की लागत 5 से 7 रुपए प्रति किलोमीटर है। बेटरी चार्जिंग में 2 से 3 यूनिट बिजली लगती है, चारजिंग टाइम और यूनिट कंसम्पशन बेटरी की कैपेसिटी पर आधारित है | अगर बेटरी कम पॉवर की है तो ये टाइम और यूनिट कम लगेगा
- इलेक्ट्रिक वाहनो में ब्रेक लगाने पर बनी ऊर्जा का उपयोग बैटरी को चार्ज करने में किया जाता है। जबकि ईंधन से चलने वाली गाड़ियों में ब्रेकिंग के दौरान जो ऊर्जा का बनती है वह उष्णीय ऊर्जा में तब्दील हो जाती है। इसके कारन उर्जा रियुज हो जाती है |
- इलेक्ट्रिक कार में ध्वनी और वायु प्रदूषण कम होता है |
- रख-रखाव में कम खर्च आता है क्यों की व्हीकल में आयल का उपयोग नही होता है |
- इलेक्ट्रिक कारों का सुरक्षित होने का सबसे मुख्य कारण है इसमें Combution Engine का नहीं होना। दूसरा इन कारो में सेंसर लगे होते ही अगर कोई दुर्घटना घटित होती है तब सेंसर पॉवर सप्लाई को काट देते है |
- कुछ राज्य सरकारे और भारत सरकार कुछ insentives देने की तेयारी में है जेसे टेक्स और सब्सिडी
इलेक्ट्रिक वाहनों की भारत में संभावनाएँ
- निजी क्षेत्र ने इलेक्ट्रिक वाहनों की अनिवार्यता का स्वागत किया है। इसलिये बाहर की बहुत सारी कम्पनीया भारत में इलेक्ट्रिक वाहन बनाने की होड़ में लगी है क्यों की भारत में इलेक्ट्रिक वाहन के लिय अपार संभावनाए है | अमेरिका की टेस्ला कंपनी भी भारत में जोर-सोर से अपने कदम ज़माने की होड़ में है|
- अमेज़न, ज़ोमैटो और स्विगी जैसी कंपनियाँ अपने डिलीवरी कार्यों के लिये EVs का अधिकाधिक प्रयोग कर रही हैं। क्यों की पेट्रोल डीजल की तुलना में इलेक्ट्रिक वाहन में कम खर्चा आता है | 2-3 यूनिट में 100-150 km के एरिया में ये अपने प्रोडक्ट की डिलीवरी आसानी से दे देते है |
- टाटा मोटर्स की ब्लू स्मार्ट मोबिलिटी के साथ साझेदारी से, महिंद्रा कार निर्माता कंपनी की ओला जैसी उपभोक्ता सेवाप्रदाता कंपनी के साथ डील से अधिकाधिक इलेक्ट्रिक वाहन डिलीवरी और राइड-हेलिंग सेवाओं की सुनिश्चितता होगी।
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इलेक्ट्रिक वाहनों की भारत में संबद्ध चुनौतियाँ
- चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी : इलेक्ट्रिक वाहन या (Electric cars) और इलेक्ट्रिक कारआमतौर पर लिथियम-आधारित बैटरी द्वारा संचालित होते हैं। इन बैटरियों को आमतौर पर प्रत्येक 200-250 किलोमीटर पर चार्ज करने की आवश्यकता होती है, बेटरी की कैपेसिटी के अनुसार। इसलिये चार्जिंग पॉइंट्स के सघन प्रसार की आवश्यकता है। इसके लिय एक नये इंफ्रास्ट्रक्चर की जरूरत है, कुछ समय के लिये पेट्रोल पंप को एक अल्टरनेटिव तोर पर उ[उपयोग किया जा सकता है |
- निजी चार्जर के उपयोग से घर पर EVs को फुल चार्ज करने में 12 घंटे तक का समय लगता है। जितना जल्दी हो सके कार निर्माताओ को सुपर चार्जर स्टेशन बनाने के लिय आगे आना चाहिय जैसे TESLA company अमेरिका में कर रही है |
- बेटरी संचालित गाडियों में मेंटेनेंस बहुत जरुरी है, समय समय पर बेटरी की सर्विस कराना बहुत जरुरी है| हाल ही के दिनों में बेटरी संचालित गाडियों में बेटरी विस्फोट की कुछ मीडिया पलेटफॉर्म से न्यूज़ आई थी जिसमे जान की भी हानि हुई है, इन कारणों पे सरकार और निर्माताओ को मिल के काम करना चाहिए, सुरुआत में कुछ बड़े कारन देखने को मिलेगे लेकिन इन कारणों का जल्दी से निवारण होना चाहिए |
- भारत जैसे बड़े और घनी आबादी वाले देश के लिये (Electric cars) इलेक्ट्रिक कार इन चार्जिंग स्टेशनों की संख्या बेहद अपर्याप्त है।चार्जिंग स्टेशन का कम से कम 30 किलोमीटर की दुरी पे तो होना ही चाहिए |
इलेक्ट्रिक वाहनों की भारत में तकनीकी चुनोतिया :
- भारत इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन के मामले में तकनीकी रूप से पिछड़ा हुआ है, जबकि बैटरी, सेमीकंडक्टर्स, कंट्रोलर आदि इलेक्ट्रिक वाहन उद्योग के लिये काफी महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं। हाल ही के दिनो में कार निर्माताओ ने सेमिकंडक्टर्स की कमी के कारन उत्पादन में कमी की थी |
- लिथियम और कोबाल्ट का भारत में कोई बड़ा भंडार नहीं है, बैटरी के उत्पादन के लिये यह उपयोग किया जाता है। भारत लिथियम आयन बैटरी के आयात के लिये जापान, दक्षिण कोरिया और चीन जैसे देशों पर निर्भर है। चीन जेसे देश पर हमारी निर्भरता ठीक नही है क्यों की भारत और चीन के बोडर पर आये दिन गर्मी का माहोल बना रहता है | चीन कभी भी भारत की सप्लाई चैन को बंद कर सकता है|
- इलेक्ट्रिक वाहनों के विकास के लिये बिजली उत्पादन में भी परिवर्तन लाए जाने की आवश्यकता है। गर्मियों के दिनों में भारत में बिजली आभाव देखा जाता आ रहा है | भारत को कोल बिजली से सोलर बिजली की और कड़े कदम उठाने चाहिए | कोल बिजली उत्पादन से प्रदुसन काफी ज्यादा होता है | भारत सरकार के हाल के कार्य को देखते हुए ये अनुमान लगन गलत नही होगा की वर्ष 2025-28 तक विश्व के सबसे बड़े सौर एवं ऊर्जा भंडारण बाज़ारों में से एक बनने की राह पर है। भारत की निजी कंपनिया भी इसमे जोर-सोर से भाग ले रही है|
- ‘क्लोज़-लूप’ का निर्माण करने की आवश्यकता और आज की जरुरत है, बैटरी के रीसाइक्लिंग स्टेशनों को बैटरी से धातुओं (जिनका उपयोग इलेक्ट्रिफिकेशन के लिये किया जाता है) को पुनर्प्राप्त करने की आवश्यकता होगी, ताकि उनको वापिस उपयोग लायक बनया जा सके।
- बेटरी आधारित वाहनों के डेली जीवन में आने पे पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (OPEC) की जगह बैटरी निर्माता और निर्यातक देश ले सकते है जिससे एक नई वैश्विक व्यवस्था उभर सकती है। आज (OPEC) देसों पर हमारी निर्भरता बनी हुई हे और काफी हद तक भारत की इकोनोमी (OPEC) देसों पर निर्भर करती है |
जो कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड जैसी कई हानिकारक गैसों का उत्सर्जन करती है।
इलेक्ट्रिक कार इतनी महंगी क्यों है
इलेक्ट्रिक कार या किसी अन्य इलेक्ट्रिक वाहन की मुख्य कीमत बैटरी पैक पर निर्भर करती है। अधिकांश इलेक्ट्रिक वाहन लिथियम-आयन सेल तकनीक का उपयोग करते हैं, जो वर्तमान में भारत में निर्मित नहीं है, और प्रत्येक निर्माता को उन्हें आयात करना होगा। साथ ही बैटरी पैक का कूलिंग सिस्टम काफी महंगा हो सकता है। इलेक्ट्रिक वाहन के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचा भारत में पूरी तरह से विकसित नहीं है। इसके अलावा, बाजार सीमित है, इसलिए बड़े पैमाने पर उत्पादन नहीं होता है, जो लागत में वृद्धि का एक प्रमुख कारक है।
इलेक्ट्रिक कार में कौन सी बैटरी लगती है?
इलेक्ट्रिक वाहनो में लिथियम-आयन सेल तकनीकी (Lithium-ion Cell Technology) का उपयोग करते है | लिथियम-आयन सेल में चार्जिंग कैपेसिटी बाकि सेल से अधिक होती है | लिथियम-आयन सेल को गाड़ी के निचले हिसो में लगाया जोता है ताकि गुरुत्वाकर्षण बल निचे रहे और गाड़ी आसानी से नहीं पलटे |
भारत में सबसे सस्ती इलेक्ट्रिक कार कौन सी है?
हाल में भारत की कार निर्माता कंपनी टाटा (TATA) मोटर्स ने कुछ वैरिएंट लोंच किये है जिनकी कीमत 8 लाख से 12 लाख के बिच है |
- TATA Tigor EV
- TATA Nexon
- TATA Punch
Conclusion
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